अजमेर जिले के कस्बे बिजयनगर में 938 में जन्मे रणजीतसिंह कूमट की शिक्षा बिजयनगर, अजमेर व दिल्ली में हुई | दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स से अर्थशास्त्र में एम. ए. कर दिल्ली विश्वविद्यालय में तीन वर्ष तक व्याख्याता के रूप में कार्य कर 1962 में भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) में प्रवेश किया और मसूरी में प्रशिक्षण के पश्चात राजस्थान राज्य प्रशासन के विभिन्न पदों यथा अजमेर, जयपुर व झालावाड़ जिलों में जिलाधीश, निदेशक शिक्षा विभाग, अध्यक्ष राजस्थान दुग्ध संघ, ग्रामीण विकास, शिक्षा, राजस्व एवं स्वास्थ्य अदि विभागों में सचिव का कार्य किया व अंत में राजस्थान राजस्व मंडल के अध्यक्ष के पद से नवम्बर 1995 में सेवा निवृत्त हुए |
1977 में इंग्लैंड में प्रशिक्षण प्राप्त किया तथा 1994 में विश्व बैंक के साथ अंधता निवारण योजना पर समझौता करने के लिए संयुक्त राज्य अमरीका गए | श्री कूमट की छवि एक इमानदार , मेहनती व गरीबों के प्रति सहानुभूति रखने वाले निष्पक्ष अफसर की रही है । सामाजिक क्षेत्र में भी अग्रणी रहने के नाते अनेक सामाजिक, शैक्षणिक व मानव विकास की गैर सरकारी संस्थाओं से जुड़े रहे और उनका उच्चस्थ पदों पर आसीन हो दिशा निर्देशन किया। 1975 में अजमेर जिले के जिलाधीश पद पर कार्यरत रहते हुए श्री महावीर स्मारक सेवा समिति की स्थापना में अग्रणी भूमिका निभाई | महावीर इंटरनेशनल शीर्षस्थ (Apex) के अध्यक्ष , राजस्थान प्रौढ़ शिक्षा समिति के अध्यक्ष, राजस्थान भारत स्काउट गाइड के चीफ कमिशनर, श्री श्वैताम्बर स्थानकवासी स्वाध्यायी संघ गुलाबपुरा के अध्यक्ष, श्री महावीर विकलांग सहायता समिति के संयुक्त सचिव रहे हैं। । 1999 मे बिजयनगर में ‘श्री प्राज्ञ कंदन वल्लभ चिकित्सालय’ की स्थापना करवाई और प्रारम्भ के 5 वर्षों तक अध्यक्ष पद पर रह कर निर्माण कार्य पूरा करवाया । वर्तमान में महावीर स्मारक सेवा समिति अजमेर के संस्थापक संरक्षक, श्री वर्द्धमान स्मारक सेवा समिति * जयपुर के संस्थापक संरक्षक बाल भवन जयपुर के अध्यक्ष व महावीर विकलांग सहायता समिति के सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं । भारत स्काउट गाइड में सराहनीय सेवाओं के लिए महामहिम राष्ट्रपति द्वारा “सिल्वर एलीफैंट” के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
घर व जैन संतों के सानिध्य से धार्मिक संस्कार मिले, जैन आगम पढ़ने का अवसर मिला | भगवद गीता, बाइबिल, रामायण, बौद्ध ग्रन्थ, योग शास्त्र, विवेकानंद साहित्य अदि का भी अध्ययन किया | पहली पुस्तक 1988 में “मुझे मोक्ष नहीं चाइये” का प्रकाशन हुआ और सुधी पाठकों ने स्वागत किया | 2004 में ‘देह और मन से परे’ का प्रकाशन प्राकृत भारती, जयपुर से हुआ | 2007 में ‘ध्यान से स्वबोध’ का हिंदी व् अंग्रेजी दोनों भाषाओं में प्रकाशन प्राकृत भारती, जयपुर से ही हुआ। इस पुस्तक में जैन, बौद्ध व पतंजलि की ध्यान प्रक्रियाओं का तुलनात्मक अध्ययन किया || ब्रिटेन में भारत के पूर्व उच्चायुक्त श्री लक्ष्मीमलजी सिंघवी के अनुसार यह पुस्तक जीने की कला व अप्रमत्त जीवन के विज्ञान के लिए महत्वपूर्ण योगदान है और मृत्यु के बाद मोक्ष की इन्तजार करने की बजाये ध्यान की प्रक्रिया से इसी जीवन को ‘मुक्त’ होकर जीने के लिए आह्वान करती है। देह और मन से परे का अंग्रेजी अनुवाद “Beyond Body and Mind” का प्रकाशन भी अभी प्राकृत भारती से हो गया है। 2015 में ही एक नई पुस्तक ‘अपने मित्र बनो’ का प्रकाशन प्राकृत भारती से हुआ है।